एडवर्ड थार्नडाइक, Edward Lee Thorndike, साहचर्य सिद्धान्त

साहचर्य सिद्धान्त ( शारीरिक )   

 साहचर्य का अर्थ साथ - साथ होता है इन सिद्धान्तों में संबंधों का निर्धारण इच्छाओं, अभिवृत्तियों, संवेगों आदि पर निर्भर करता है ये सिद्धान्त निम्नलिखित है

 

1. थार्नडाइक का सिद्धान्त

2. पॉवलाव का सिद्धान्त

3. स्किनर का सिद्धान्त

 
 

               थार्नडाइक का सिद्धान्त  -

एडवर्ड थार्नडाइक( Edward Lee Thorndike )(1874- 1949)

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परिचय -  USA  के मनोवैज्ञानिक थे इनका लगभग अपना पूरा जीवन कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के शिक्षक महाविद्यालय में बीता वे मनोवैज्ञानिक कॉर्पोरेशन के बोर्ड के सदस्य थे तथा सन् 1912 में अमेरिकन मनोवैज्ञानिक संघ ( American Psychological Association ) के अध्यक्ष भी रहे 19 अगस्त 1949 को न्यूयार्क ( मांट्रोज ) में उसकी मृत्यु हुई

 

पशु व्यवहार एवं सीखने की प्रक्रिया पर उनके कार्य के आधार पर ही आधुनिक शैक्षिक मनोविज्ञान की वैज्ञानिक नीव पड़ी उन्होने औध्योगिक समस्याओं के समाधान की दिशा में भी कार्य किया यथा- कर्मचारी परीक्षा एवं परीक्षण   

 

पशु मनोविज्ञान के गंभीर अध्ययन के अतिरिक्त थार्नडाइक ने सीखने की प्रक्रिया में

1-  मानसिक व्यवहार,

2-  थकान और

3-  पठनक्षमता

तथा अन्य कारकों की परीक्षण विधियों के अविष्कार में महत्वपूर्ण योगदान किया थार्नडाइक ने प्रौढ़ शिक्षा अभियान को एक नया और वैज्ञानिक रूप प्रदान किया मनोवैज्ञानिक परीक्षण की अपनी विधियों द्वारा उसने सीखने की क्षमता और पूर्वार्जित ज्ञान मे भेद स्पष्ट किया और इसमें उसका नाम अग्रगण्य है शिक्षा संबंधी विचारों तथा उसकी व्यावहारिकता पर उसकी कृतियों का विशेष प्रभाव पड़ा।

 

प्रमुख पुस्तकें-

1- एडूकेशनल साइकॉलजी ( 1903 ) ,

2- एनीमल इंटेलीजेंस ( 1911 ) ,

3- साइकालजी ऑव लनिंग ( 1914 ) ,

4- मेजरमेंट ऑव इंटेलीजेंस ( 1926 ) ,

5- फंडामेंटल्स ऑव लनिंग ( 1933 ) ,

6- ह्यूमन नेचर ऐंड सोशल आर्डर ( 1940 )

 

 थार्नडाईक ने "सीखने की प्रक्रिया में उद्दीपन एंव अनुक्रिया के संबंध को सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण माना"

 

थार्नडाइक का मानना है कि अधिगम की प्रक्रिया में शारीरिक और मानसिक क्रियाओं का किसी किसी मात्रा में संबंध होता है इसी से जब किसी व्यक्ति के समक्ष किसी परिस्थिति में कोई   उद्दीपन होता है तो वह  उद्दीपन  व्यक्ति को किसी विशेष प्रतिक्रिया के लिए प्रेरित करता है यदि उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया सुखद होती है तो वह उसे पुनः दोहराता है क्योंकि उसे संतोष मिलता है और पुनः पुनः उसे दोहराकर वह उस व्यवहार को सीख लेता है और यदि उद्दीपन के प्रति अनुक्रिया दुखद होती है तो उसे नहीं दोहराया जाता , उसे नहीं सीखा जाता अर्थात, उद्दीपन( S ) अनुक्रिया ( R ) के मध्य एक घनिष्ठ संबंध स्थापित हो जाता है ,        

  इसी को थॉर्नडाइक का प्रयास और त्रुटि द्वारा अधिगम    अथवा "सम्बद्धवाद का सिद्धांत" कहा जाता है थॉर्नडाइक के सिद्धांत के अन्य नाम

1. थॉर्नडाइक का सम्बन्धवाद सिद्धांत

2. थार्नडाइक का सम्बन्ध सिद्धांत

3. उद्दीपन अनुक्रिया सिद्धांत

4. प्रयास एवं त्रुटि का सिद्धांत

 थार्नडाइक के सिद्धांत के अनुसार   कोई विशेष उद्दीपन किसी अनुक्रिया ( S - R ) द्वारा इस प्रकार संबंधित हो जाता है कि भविष्य में उस उद्दीपन की उपस्थिति में वही अनुक्रिया घटित होती है     उद्दीपन और अनुक्रिया के संबंध के कारण ही यह सिद्धांत संबंधवाद का सिद्धांत कहलाता है

 

थॉर्नडाइक के अनसार -  सीखना/ अधिगम संबंध स्थापित करना है अर्थात  किसी विशेष परिस्थिति के उपस्थित होने पर जीव कोई अनुक्रिया करता है ये अनुक्रिया प्रारंभ में त्रुटिपूर्ण होती है किंतु यदि पुनः पुनः वैसे ही परिस्थिति आती है तो दोषपूर्ण अनुक्रिया कम होती जाती है और बाद में जीव उस परिस्थिति में केवल उचित अनुक्रिया ही करता है अर्थात वह भूल और प्रयास के द्वारा सीखता है ' इस संबंध में थॉर्नडाइक द्वारा अनेक प्रयोग किए गए और ये प्रयोग प्रायः जानवरों पर किए गए ये इस प्रकार हैं

 

थार्नडाइक का प्रयोग -   इन्होंने एक लोहे का पिंजरा ( मंजूशा ) लिया जिसका दरवाजा लीवर के दबने से खुलता था   इस पिंजरे में भूखी बिल्ली को रखा था तथा इसके बाहर भोजन ( मछली के टुकड़े ) को रखा गया जैसे ही बिल्ली को भूख लगती है ( आन्तरिक उद्दीपन ) या बिल्ली की नजर भोजन पर पडती है ( बाह्य उद्दीपन ) तो बिल्ली अनुक्रिया के रूप में प्रयास करती है तथा पिंजरे की दीवारों पर पंजा मारती है इनमें से एक प्रयास सफल हो जाता है, क्योकि बिल्ली के पंजे से लीवर दब जाता है तथा उसका दरवाजा खुल जाता है और बिल्ली पिंजरे से बाहर निकलना सीख जाती है , तथा भोजन प्राप्त कर लेती है   जब थार्नडाइक ने इसी प्रयोग को इस बिल्ली के साथ इन्हीं परिस्थितियों में अनेक बार किया तो बिल्ली ने उत्तरोत्तर कम प्रयासों में भोजन प्राप्त करना सीख लिया   इसके आधार पर थार्नडाइक ने सीखने के नियमों का प्रतिपादन किया , जो अत्यधिक सफल हुये इसलिए

 

थार्नडाइक को सीखने के नियमों का जनक माना जाता है   इस प्रयोग के आधार पर यह निष्कर्ष निकलता है कि

1. अधिगम का आधार उद्दीपन - अनुक्रिया ( S - R ) का संबंध होता है

2. कोई जीव उद्दीपन और अनुक्रिया में जितना अधिक संबंध स्थापित करेगा, अधिगम उतना ही शीघ्रता से होगा

3. अधिगम की प्रक्रिया में कोई कोई प्रेरणा अवश्य होती है

 

4. अधिगम के लिए किए गए प्रयासों के बढ़ने के साथ - साथ अनावश्यक क्रियाएं कम होती जाती है

5 - इस सिद्धांत के आधार पर बालकों में धैर्य - परिश्रम की भावना जागृत होती है

6 . जूते पहना , छोटे बालकों को जूते पहनना , चम्मच से खाना आदि के लिए सिखा सकते हैं

 थॉर्नडाइक ने अपने इस सिद्धांत के आधार पर अधिगम से संबंधित तीन नियम प्रस्तुत किए

 

        थॉर्नडाइक के अधिगम के मुख्य नियम

1- तत्परता का नियम ( Law of Readiness ) - जब कोई व्यक्ति अधिगम करने के लिए तत्पर होता है तभी उसे सिखाया जा सकता है 'तत्पर होने पर व्यक्ति को अधिगम कराया जाए तो उसे अधिगम करने में संतष्टि होती है कक्षा - शिक्षण में यह नियम अति महत्वपूर्ण है जब विद्यार्थी सीखने के लिए तत्पर हो तभी उसे सिखाया जा सकता है इसके लिए उन्हें तत्पर करना पड़ता है

उदाहरण के लिए यदि बिल्ली भूखी होती और उसे अपना भोजन सामने रखा हुआ दिखाई देता तो वह बाहर निकलने के लिए प्रयास नहीं करती  तत्परता का अर्थ है कि अनुबंध के पूर्ण होने पर संतोष मिलता है और पूर्ण होने पर असंतोष होता है इसलिए अधिगम से पूर्व परिस्थितियां उचित ढंग से प्रस्तुत की जानी आवश्यक है

2- अभ्यास का नियम ( Law of Exercise ) - थॉर्नडाइक के अनुसार जब किसी प्रत्युत्तर की पुनरावृति करके अभ्यास किया जाता है तो अनुबंध दृढ़ होता है और अभ्यास के अभाव में अनुबंधन निर्बल होता है अर्थात अभ्यास के अभाव में उद्दीपन और अनुक्रिया अनुबंध निर्बल हो जाते हैं कक्षा शिक्षण में अभ्यास का नियम अति महत्वपूर्ण है - गणित , व्याकरण आदि अभ्यास से ही भली भांति सीखे जा सकते हैं अभ्यास से उद्दीपन अनुक्रिया संबंध अधिक दृढ़ होते हैं किंतु अभ्यास में अशुद्ध या गलत अनुक्रिया नहीं की जानी चाहिए अन्यथा उद्दीपन अनुक्रिया में संबंध टूट जाएगा इसे अनभ्यास का नियम ( Law of Disuse ) कहते हैं इस नियम को उपयोग और अनुपयोग का नियम भी कहा जाता है

3 - प्रभाव का नियम ( Law of Effect ) - थॉर्नडाइक का मानना है कि जब किसी उद्दीपन के प्रति कोई अनुक्रिया प्रदर्शित होती है और उससे संतोष मिलता है , तो अधिगम प्रभावकारी होता है   इस अनुक्रिया को पुनः पुनः करने का प्रयत्न किया जाता है , किंतु यदि कोई अनुक्रिया दुःखद होती है तो उसे छोड़ दिया जाता है यही अधिगम का प्रभाव का नियम है इस प्रकार अधिगम और संतोष - दोनों संबंधित हैं - इसके साथ ही पुरस्कार और दंड से भी संबंधित किया गया है - थॉर्नडाइक का मानना है कि पुरस्कार अधिगम में सहायक होता है | और दंड अधिगम में बाधक होता है   उदाहरणार्थ- यदि किसी बच्चे को किसी कार्य की सफलता के लिए पुरस्कृत किया जाए तो वह उस क्रिया की पुनरावृति करेगा और यदि किसी कार्य के लिए उसे दंडित किया जाए तो वह उस कार्य को पुनः नहीं करेगा इस नियम को पुरस्कार दंड का नियम भी कहा जाता है - थार्नडाईक को सीखने के नियमों का जन्मदाता माना जाता है

 

 

अधिगम के गौण नियम ( Secondary Law of Learning )

-  थॉर्नडाइक ने उपर्युक्त 3 नियमों के अतिरिक्त अधिगम के पांच गौण नियमों का प्रतिपादन भी किया है जो इस प्रकार है -

 

1-  बहु विधि अनुक्रिया का नियम  -   इस नियम के आधार पर अधिगमकर्ता सही अनुक्रिया प्राप्त करने के पूर्व अनेक अनुप्रियाए करता है और सफलता प्राप्त होने पर उस अनुक्रिया को ही दोहराता है जो सही है इस प्रकार प्रयास त्रुटि का शिक्षा में यह महत्व है कि व्यक्ति अपने प्रयास से सीखता है

 

2-  मनोवृति का नियम  -  अधिगम के लिए सकारात्मक मनोवृति का होना आवश्यक है अध्यापक छात्रों को अनेक प्रकार से सिखाने के लिए  तत्पर करता है किंतु जब तक छात्र स्वयं सीखने के लिए तत्पर नहीं होंगे या उनकी मनोवृति अधिगम की नहीं होगी तब तक अधिगम नहीं हो सकेगा अर्थात छात्रों की उद्दीपन की प्रति मनोवृति का प्रभाव उनकी अनुक्रिया पर पड़ेगा

 

3-  आंशिक क्रिया का नियम  -  थार्नडाइक  कि अनुसार अधिगमकर्ता अनेक तत्वों में से  वान्चित तत्वों का चयन करके अनुक्रिया करता है इसका तात्पर्य है कि वान्चित तत्वों के चयन करने की क्षमता होती है

 

4-  साहचर्य या सादृश्यता का नियम -   इस नियम के अनुसार अधिगमकर्ता नवीन समस्या के समाधान के लिए पूर्व में समान परिस्थिति में की गई अनु क्रियाओं को दोहराता है कक्षा शिक्षण में अध्यापक इसी नियम के आधार पर पूर्व ज्ञान से नवीन ज्ञान के संबंध को स्थापित करते हैं

 

5-  साहचर्य परिवर्तन का नियम  - थार्नडाइक के अनुसार पूर्व में की गई अनुक्रिया को उसी के समान दूसरी परिस्थिति में किया जाता है तो नवीन उद्दीपन उत्पन्न होता है अर्थात इस नियम के अनुसार प्राप्त ज्ञान का उपयोग अन्य समान परिस्थितियों में किया जाता है

 

प्रयास और त्रुटि के सिद्धांत का शिक्षा में प्रयोग -   थार्नडाइक  का प्रयास त्रुटि का सिद्धांत उद्दीपन अनुक्रिया संबंध पर आधारित है पुनर्बलन का विचार प्रस्तुत करते हुए बताया है कि जब अधिगमकर्ता को सुखद अनुक्रिया होती है तभी अधिगम होता है कक्षा शिक्षण में यह सिद्धांत उपयोगी है गणित नृत्य संगीत टंकण आदि में यह सिद्धांत महत्वपूर्ण है इस सिद्धांत के आधार पर समस्या समाधान एवं शिक्षक द्वारा निर्देशन से विद्यार्थियों का अधिगम किया जा सकता है

 

थार्नडाइक के सिद्धांत का मूल्यांकन -   थार्नडाइक ऐसे अमेरिकन मनोवैज्ञानिक थे जिन्होंने उद्दीपन अनुक्रिया से संबंधित अनेक प्रयोग जानवरों पर किए अपने अधिगम में पुरस्कार के संप्रत्यय का विचार प्रस्तुत किया तथा पुनर्बलन के सिद्धांत पर महत्व दिया थार्नडाईक अपने प्रयोगों के आधार पर साहचर्य को अधिगम का आधार बताया तथा अधिगम के महत्वपूर्ण नियम प्रतिपादित किए थार्नडाइक के अनुसार प्रयास और त्रुटि का सिद्धांत जो उद्दीपन अनुक्रिया पर आधारित है साहचर्य वादी सिद्धांत ही है

अतः उद्दीपन अनुक्रिया द्वारा अधिगमकर्ता जितनी शीघ्रता से समस्या से संबंध स्थापित कर लेता है वह उतनी ही शीघ्रता से कार्य को सीख लेता है कक्षा शिक्षण में यह सिद्धांत उपयोगी है

 

प्रयास त्रुटि के सिद्धांत की आलोचना  थार्नडाइक का सिद्धांत अनावश्यक प्रयत्न पर बल देता है जिसकी कोई आवश्यकता नहीं है यह सिद्धांत छोटे बच्चों यह मंदबुद्धि बालकों के लिए अधिक उपयोगी है पुनः पुनः अभ्यास रटने की प्रवृत्ति की ओर संकेत करता है

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