पावलव, Ivan Pavlov,

पावलव  [  Ivan Pavlov ]


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परिचय - पावलव रूस के शरीर शास्त्री थे 1904 में अधिगम का

1-  अनुकूलित अनुक्रिया सिद्धांत या

2-  शास्त्रीय अनुबंध सिद्धांत या

3-  उद्दीपन परिवर्तन या

4-  संबंध प्रत्यावर्तन या

5-  S.R. सिद्धांत   प्रतिपादित किया

 

स्वाभाविक उद्दीपन के प्रति स्वाभाविक अनुक्रिया एक सामान्य अनुक्रिया कहलाती है इस सिद्धांत में अस्वाभाविक उद्दीपन का प्रयोग स्वाभाविक उद्दीपन के स्थान पर किया जाता है इसलिए इसे  

1- "उद्दीपन परिवर्तन सिद्धांत" या   

2- "सक्रिय अनुबंध" या

3- "क्रिया प्रसूत अनुबंधन" या

4- "S.R. सिद्धांत"  कहते हैं

इस सिद्धांत की पुष्टि हेतु वाटसन ने अपने 11 माह के शिशु अल्बर्ट पर प्रयोग किया जिसके निष्कर्ष या परिणाम इस सिद्धांत की पुष्टि करते हैं जिसमें

 

1- स्वाभाविक उद्दीपन (घंटी बजाना)

2- अस्वाभाविक उद्दीपन (सफेद खरगोश)

3- अनुक्रिया( बालक का घर जाना)

 

     पावलव का शास्त्रीय अनुबंध का सिद्धांत

यह सिद्धांत थार्नडाइक के प्रभाव के नियम पर आधारित है अधिगम में उद्दीपन और अनुक्रिया (S.R.) के बीच साहचर्य स्थापित होता है यह तथ्य अनुबंधन के प्रयोग के रूप में स्पष्ट हो चुका है अनुबंधन दो प्रकार के हैं

1 शास्त्रीय अनुबंधन अथवा अनुकूलित अनुक्रिया ( पावलव )

2 क्रिया प्रसूत या नैमित्तिक अनुबंधन ( स्किनर )

अनुबंधन वह प्रक्रिया है जिसमें एक प्रभावहीन उद्दीपन ( वस्तु अथवा परिस्थिति ) इतनी प्रभावशाली हो जाती है कि वह गुप्त अनुक्रिया को प्रकट कर देती है।

 

                  शास्त्रीय अनुबंधन

एक शास्त्रीय अनुबंधन को समझने के पूर्व यह जानना आवश्यक है कि मनुष्य की अनेक क्रियाएं होती हैं-

(1) कुछ जन्मजात क्रियाएं (physiological reflex) होती हैं,जैसे- श्वास लेना, पाचन संस्थान, रुधिर संस्थान आदि स्वयं चालित क्रियाओं को लिया जा सकता है तथा

(2) कुछ मनोवैज्ञानिक क्रियाएं (Psychological reflex ) होती है  जैसे- पलक झपकाना, छींकना, लार आना आदि | इन्हें "अनुबंधन क्रिया" भी कहते हैं

 जब मूल उद्दीपक के साथ दिया जाए और पुन: पुन: इसकी आवृत्ति की जाए तो ऐसी स्थिति उत्पन्न हो जाती है कि यदि मूल उद्दीपक को हटाकर उसके स्थान पर नवीन उद्दीपक ही प्रस्तुत किया जाए तो भी वही अनुक्रिया होती है जो मूल उद्दीपक के साथ होती थी । इसका कारण यह है कि अनुक्रिया नवीन उद्दीपक से सम्बद्ध हो जाती है।

पावलव एक शारीरिक चिकित्सक था उसने एक कुत्ते पर प्रयोग किया। उसने कुत्ते की लार ग्रंथि का ऑपरेशन किया और उस ग्रंथि का संबंध एक ट्यूब द्वारा एक कांच की बोतल से स्थापित किया जिसमें लार को एकत्र किया जा सकता था।

इस प्रयोग को पावलव ने इस प्रकार किया कि कुत्ते को खाना दिया जाता था तो खाने को देखते ही कुत्ते के मुंह में लार आना प्रारंभ हो जाती थी।  खाना देने के पूर्व घंटी बजाई जाती थी और घंटी के साथ ही साथ खाना दिया जाता था। इस प्रक्रिया को कई बार दोहराया गया और

तत्पश्चात घंटी बजाई किंतु भोजन नहीं दिया गया। इस क्रिया के पश्चात भी कुत्ते के मुंह से (घंटी बजाते ही) लार आनी प्रारंभ हो गई

यहां भोजन स्वाभाविक उद्दीपक है जिसे (conditioned stimulus ) या ( UCS) कहा गया है।

 भोजन को देखते ही कत्ते के मुंह में लार आना स्वाभाविक अनुक्रिया है जिसे Conditioned response या (UCR) कहा गया है जिसका अर्थ है की अनुक्रिया किसी विशेष दशा पर निर्भर नहीं अपितु स्वाभाविक रूप से ही भोजन को देख कर जाती है।

 भोजन को स्वाभाविक उद्दीपक (UCS)कहा गया है उसके साथ-साथ बजाई जाने वाली घंटी को पावलव ने अनुबंधित अथवा अस्वाभाविक उद्दीपक conditioned stimulus (CS) कहा क्योंकि यह स्वाभाविक उद्दीपक ( भोजन) के साथ दी जाती थी।

कई बार घंटी के साथ भोजन देने के उपरांत- भोजन देकर केवल घंटी (CS) ही बजाई गई और देखा कि जो स्वाभाविक अनुक्रिया (UCR) अथवा लार भोजन (UCS) को देखकर आती थी वही अनुक्रिया(लार), अस्वाभाविक उद्दीपक (US) अर्थात्घण्टी के साथ भी आई, से अनुबंधित अथवा अस्वाभाविक अनुक्रिया ( Conditioned response) या (CS) कहा गया। इसे निम्न प्रकार से किया जा सकता है-

 

1-भोजन स्वाभाविक उद्दीपक (UCS) लार स्वाभाविव अनुक्रिया (CR)

2 - घण्टी की आवाज अस्वाभाविक उद्दीपक एवं स्वभाविक उद्दीपन

लार स्वभाविक अनुक्रिया (UCR) एवं भोजन (CS + CS)

3 - घण्टी की आवाज अस्वाभाविक उद्दीपन (CS) लार अस्वाभाविक अनुक्रिया ( CR )

 

-इस प्रयोग के आधार पर शास्त्रीय अनुबंधन को इस प्रकार स्पष्ट किया जा सकता है कि यदि स्वाभाविक उद्दीपक के साथ अस्वाभाविक उद्दीपक दिया जाए तो और इसकी पुनरावृत्ति अनेक बार की जाए तो कालान्तर में स्वाभाविक उद्दीपक के हटाए जाने पर भी अस्वाभाविक उद्दीपक से भी वही अनुक्रिया होती है जो स्वाभाविक उद्दीपक के साथ होती थी।

गिलफोर्ड ने इसकी व्याख्या इस रूप में की है,-जब दो उद्दीपक साथ-साथ बार-बार प्रस्तुत किए जाते हैं, इनमें पहले नवीन और बाद में मौलिक हो, तो कालांतर में पहला भी प्रभावी हो जाता है

 शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत के लिए कुछ स्थितियाँ आवश्यक हैं, जिनके आधार पर ही अधिगम प्रक्रिया प्रभावी होती है, जो निम्नलिखित हैं

1-  प्रेरणा ( Motivation) - शास्त्रीय अनुबंधन को प्रभावित करने वाला प्रमुख कारक प्रेरणा है |प्रेरणा जितनी अधिक तीव्र होगी, प्राणी उतनी ही शीघ्रता से अनुबंध करेगा। पावलव के प्रयोग में कुत्ता भूखा था इसी कारण उसमें भोजन वे साथ-साथ घंटी की आवाज से ही लार टपकने की क्रिया होती थी जो बाद में घंटी की आवाज से ही होने लगी यदि वह भूखा ना होता तो घंटी भोजन का प्रभाव उस पर पड़ता। अत: अधिगम के लिए प्रभावी प्रेरक या प्रेरणा का होना आवश्यक हे

 2-  समय की सन्निकटता (Proximity Of Time)- शास्त्रीय अनुबंधन सिद्धांत द्वारा अधिगम करने का दूसरा कारक  समय की सन्निकटता है अर्थात अस्वाभाविक उद्दीपक के तुरंत बाद स्वाभाविक उद्दीपक देने से हीं स्वाभाविक अनुक्रिया होती है। यदि दोनों उद्दीपकों में समय का अंतराल अधिक हो जाएगा तो अनुक्रिया नहीं होगी और इस प्रकार अधिगम भी उस रूप में ना हो सकेगा।

 3-  पुनरावृति (repetition) - शास्त्रीय अनुबंधन को प्रभावित करने वाला तीसरा कारक पुनरावृति है। अस्वभाविक उद्दीपन को स्वभाविक उद्दीपन के साथ पुन: पुनः उपस्थित करने पर ही जीव अस्वभाविक उद्दीपक का स्वाभाविक उद्दीपक के साथ संबंध स्थापित कर पाता है और परिणाम स्वरुप अस्वाभाविक उद्दीपक के प्रति स्वाभाविक उद्दीपक के समान स्वाभाविक अनुक्रिया करना सीख लेता है।

 4-  नियंत्रित वातावरण ( Controlled Environment)- जब शास्त्रीय अनुबंधन द्वारा सीखने की प्रक्रिया हो रही होती है तो यह आवश्यक है कि वातावरण को नियंत्रित हो किसी भी प्रकार के बाधक उद्दीपक ना हों क्योंकि अन्य उद्दीपकों से ध्यानाकर्षण हो सकता है और इस प्रकार अधिगम में बाधा सकती है।  इसी कारण पावलव ने अपनी प्रयोग शाला को ध्वनिरोधी बनवाया था जिससे की घंटी के अतिरिक्त अन्य कोई ध्वनि सुनी जा सकें

 

              अधिगम के क्षेत्र में पावलव का योगदान -

1) पावलव का सिद्धांत अधिगम के क्षेत्र में बड़ा प्रभावशाली है। पावलव ने सर्वप्रथम इसे एक मानसिक क्रिया के रूप में वस्तुनिष्ठ ढंग से प्रस्तुत किया।

2) व्यवहार की प्रक्रिया सिखाने में यह सिद्धांत बड़ा सहयोगी है। मनुष्य और पशुओं के निम्नलिखित अधिगम क्षेत्रों में शास्त्रीय अनुबंधन का सिद्धांत महत्वपूर्ण सिद्ध होता है

( 1 ) आदत निर्माण (Habit Formation ) - पावलव ने स्वयं कहा है -  विभिन्न प्रकार की आदतें जो कि प्रशिक्षण,शिक्षा एवं अनुशासन पर आधारित है, शास्त्रीय अनुबंधन की ही श्रृंखला मात्र है| इसका आशय है कि बालकों में अनेक अच्छी आदतें जैसे-सफाई,समय पर कार्य करना, आदर करना आदि इस विधि से सिखाई जा सकती है। अनुशासन की भावना का विकास भी इस प्रकार किया जा सकता है। इस प्रकार बालकों के व्यवहार को नियंत्रित किया जा सकता है

( 2 ) बुरी आदतों को तोड़ना ( Breaking of bad habits) - पावलव का यह सिद्धांत केवल अच्छी आदतों को सिखाने में सहायक है अपितु खराब आदतों को छोड़ने में भी यह उपयोगी है। जिस प्रकार अनुबंधन द्वारा अधिगम किया जाता है उसी प्रकार अननुकूलन विधि द्वारा बुरी आदतों जैसे- गाली देना, चोरी करना आदि को तोड़ा जा सकता है।

कुसमायोजित बालकों में व्याप्त संवेगात्मक अस्थिरता चिंता आदि का निवारण भी इस विधि द्वारा किया जा सकता है। इस प्रकार मनोचिकित्सा के क्षेत्र में यह सिद्धांत सहायक है

( 3 ) अभिवृत्ति निर्माण में सहायक (Helpful in formation of attitude ) - शास्त्रीय अनुबंधन के द्वारा अधिगम से शिक्षक एवं स्कूल आदि के प्रति अच्छी अभिवृत्तियों के विकास में सहायता मिलती है।

( 4 ) पशुओं का प्रशिक्षण (Training of Animals )- पावलव के इस सिद्धांत के आधार पर मनोरंजन के लिए पशुओं आदि को प्रशिक्षित किया जा सकता है। सर्कस के लिए इसी विधि से पशु प्रशिक्षित किए जाते हैं।

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