गेस्टाल्ट, वरदाइमर व कोफका एवं कोहलर, सूझ अथवा अंतर्दृष्टि का सिद्धांत, Wolfgang Köhler


 कोहलर का सूझ अथवा अंतर्दृष्टि का सिद्धांत

 अधिगम के क्षेत्र सिद्धांत के अंतर्गत कोहलर के अंतर्दृष्टि अथवा सूझ सिद्धांत को जानने से पूर्व क्षेत्र सिद्धांत के अर्थ को जानना आवश्यक है।

 इन्हें संज्ञानात्मक क्षेत्र सिद्धांत (cognitive field theory) कहा जाता है क्योंकि इन सिद्धांतों में संज्ञान अथवा प्रत्यक्षीकरण को विशिष्ट महत्व प्रदान किया जाता है। इन्हें गेस्टाल्ट सिद्धांत भी कहा जाता है

 गेस्टाल्ट का उदय उद्दीपन अनुक्रिया ( S - R ) सिद्धांतों के विरोध में हुआ क्योंकि ये सिद्धांत मनोविज्ञान को विशुद्ध वैज्ञानिक स्वरूप प्रदान करने के लिए कार्य कर रहे थे।

 गेस्टाल्ट मनोविज्ञान के अनुसार जब हम वातावरण में किसी वस्तु का प्रत्यक्ष करते हैं तो हम उसकी आकृति, प्रतिमान और विन्यास के प्रति प्रतिक्रिया करते हैं अर्थात उसके नवीन प्रतिमानों को देखकर उनको संगठित करते हैं जिससे हमें एक सार्थक समग्रता का ज्ञान होता है।

 वास्तव में गेस्टाल्ट शब्द जर्मन भाषा का है जिसका अर्थ   समग्रता अथवा संपूर्ण है। इस सिद्धांत के प्रतिपादक वरदाइमर, कोफका एवं कोहलर का नाम उल्लेखनीय है।

 क्षेत्र सिद्धांत के अंतर्गत कोहलर के सूझ सिद्धांत अथवा अंतर्टृष्टि सिद्धांत –

कोहलर ने अधिगम से संबंधित अनेक प्रयोगों के आधार पर   अंतर्दृष्टि अथवा सूझ के सिद्धांत का प्रतिपादन किया | इसे सीखने का गेस्टाल्ट सिद्धांत भी कहा जाता है

अंतर्दृष्टि सिद्धांत की व्याख्या कोहलर ने अपनी पुस्तक गेस्टाल्ट साइकोलोजी-1959 में की है | गेस्टाल्ट में आकार की पूर्णता को महत्व दिया जाता है, उसके विभिन्न अंगों पर ध्यान नहीं दिया जाता क्योंकि इस सिद्धांत के अनुसार अंगों की अपेक्षा संपूर्ण बड़ा होता है( The Whole is Greater than Parts) अर्थात्किसी समस्या के उपस्थित होने पर व्यक्ति उसका निरीक्षण करता हैं अपना ध्यान केंद्रित करता है और समस्या के सभी उपायों को समझता है उनका हल निकलता है

एंडरसन के अनुसार अंतर्दृष्टि से तात्पर्य समस्या के हल को यकायक प्राप्त कर लेने से है। अर्थात्अधिगमकर्ता प्रत्यक्षीकरण एवं विचारों को संगठित करके, किसी समस्या का उपयुक्त समाधान प्रस्तुत करता है। कोहलर ने अनेक प्रयोग करके "सूझ का सिद्धांत"   प्रस्तुत किया | उसने चिंपाजी को अपने अध्ययन का विषय बनाया

                कोहलर का प्रयोग -

कोहलर ने एक पिंजरे में सुल्तान नामक चिंपाजी को बंद कर दिया। पिंजरे में दो छड़े इस प्रकार रखी गई कि उन्हें एक दूसरे में फंसाकर लंबा बनाया जा सकता था और पिंजरे के बाहर केले इधर-उधर रखे गए थे चिंपाजी केलों तक पहुंच नहीं सकता था केलों को देखकर चिंपाजी उन्हें लेने का प्रयास करने लगा किंतु बिना छडों की सहायता से उन्हें प्राप्त करना कठिन था। यकायक चिंपाजी की दृष्टि छडों पर गई और उसने केलों और छड़ी के मध्य संबंध स्थापित कर लिया उसने छडों को उठाया अचानक दोनों छडों को उसने एक दूसरे में 'फंसाया और उन्हें लंबा कर लिया तथा उन छड़ियों की सहायता से केलों को अपनी ओर खींच कर प्राप्त कर लिया

इस प्रकार कोहलर ने चिंपाजी पर अनेक प्रयोग किए और निष्कर्ष निकाला कि जीव संपूर्ण वातावरण का प्रत्यक्षीकरण करता है और इसके आधार पर उसने सूझ उत्पन्न होती है, इससे वह अपनी समस्या का समाधान करना सीख लेता है

संक्षेप में क्षेत्र का प्रत्यक्षीकरण होना तथा उस क्षेत्र का पुन: संगठन करना ही सूझ या अंतर्टृष्टि है।

 

     अंतर्दृष्टि पर आधारित अधिगम की विशेषताएं

1-  समस्यात्मक स्थिति का सर्वेक्षण-   व्यक्ति सर्वप्रथम समस्या के सभी पहलुओं का निरीक्षण करता है। समस्यात्मक स्थिति में हिचकिचाहट, विश्राम एवं ध्यान का केंद्रीकरण् करना - इसमें व्यक्ति हिचकिचाहट करता है, विश्राम लेता है और चित्त को एकाग्र कर समस्या पर ध्यान देता है।                   

2-  परिवर्तित अनुक्रियाओं द्वारा प्रयास करना-  इस स्तर पर व्यक्ति उपयुक्त अनुक्रियाओं द्वारा अनेक प्रयास करता है।

3-  प्रथम अनुक्रिया उपयुक्त सिद्ध होने पर अन्य अनुक्रिया करना-  यदि पहले अनुक्रिया उपयुक्त नहीं सिद्ध होती तो व्यक्ति अन्य प्रकार की अनुक्रियाएं करता है।

 4-  उद्देश्य, लक्ष्य अथवा प्रेरणा की ओर बार बार ध्यान केंद्रित करना-  सूझ द्वारा सीखने में निरंतर अपने लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित किया जाता है जिससे उपयुक्त अनुक्रिया करने की प्रेरणा मिलती है।

 5-  यकायक उपयुक्त अनुक्रिया अभिव्यक्त करना- उस निर्णायव बिंदु का आभास हो जाना जिस पर पहुंचकर व्यक्ति यकायक उपयुक्त कार्य को संपन्न कर लेता है।

 6-  अनुकूलित-अनुक्रिया की पुनरावृत्ति करना- एक बार जब उपयुक्त क्रिया कर ली जाती है तो व्यक्ति पुन: पुन: उसकी पुनरावृति करता है।

 7-  समस्या के आवश्यक पहलुओं पर ध्यान देने एवं अनावश्यक पहलुओं को त्याग देने की योग्यता आना- अंतिम स्तर पर व्यक्ति में यह योग्यता जाती है कि वह समस्या के आवश्यक पहलुओं पर ध्यान देता है तथा अनावश्यक पहलुओं को त्याग देता है।

 

अधिगम से संबंधित उपयुक्त विशेषताओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि अधिगमकर्ता-

1-  सर्वप्रथम समस्या को समझने का प्रयास करता है

2-  वह परिस्थितियों को समझकर में संबंध स्थापित करता है।

3-  इस स्थिति में उसमें अचानक सूझ उत्पन्न हो जाती है और

4-  इसके आधार पर वह समस्या या परिस्थिति को हल कर लेता है अर्थात

अधिगमकर्ता का परिस्थिति से भली प्रकार प्रत्यक्षीकरण करने उसके विभिन्न अंगों से संबंध स्थापित कर लेने पर उसमें यकायक अंतर्दृष्टि यह सोच विकसित होने को ही अंतर्दृष्टि द्वारा सीखना कहा जाता है।

गेस्टाल्ट वादियों के अनुसार अंतर्दृष्टि का सिद्धांत 5 संप्रत्ययों के आधार पर कार्य करता है जो इस प्रकार है-

(1) लक्ष्य (Goal)

(2) बाधा (Obstruction)

(3) तनाव ( Tension)

(4) संगठन (organisation)

(5) पुनरुत्थान (Re- organization)

 

 व्यक्ति के समक्ष जब कोई लक्ष्य होता है तो वह उसे प्राप्त करने का प्रयास करता है। इस प्रयास में उसे अनेक बाधाओं का सामना करना पड़ता है बाधाएं तनाव उत्पन्न करती हैं | तनाव व्यक्ति के अंदर संपूर्ण समस्या का संगठित प्रत्यक्षीकरण प्रस्तुत करता है जिसके फलस्वरूप व्यक्ति बाधा को दूर कर लक्ष्य प्राप्ति हेतु अनेक प्रयास करता है। सफल होने पर समस्या के समस्त पक्षों को पुर्नसंगठित करने का प्रयास करता है और अंत में वह लक्ष्य को प्राप्त कर लेता है

 

       अंतर्दष्टि के सिद्धांत का शिक्षा में योगदान

गेस्टाल्ट मनोविज्ञान ने सीखने के क्षेत्र में प्रेरणास्पद स्थान ग्रहण किया है। इन्हें संज्ञानात्मक मनोविज्ञान का जनक कहा जाता है। सूझ के सिद्धांत का शिक्षा के क्षेत्र में अत्यधिक उपयोग है जिसे निम्नलिखित रुप में देखा जा सकता है-

1-  यह सिद्धांत सीखने में छात्र के रटने के सिद्धांत अथवा आदत बनाकर सीखने के नियम का विरोध करता है और समस्या समाधान विधि पर आग्रह करता है।   

गैरीसन- सूझ का सिद्धांत समस्या का हल करने की विधि पर आधारित है |

2-  अंतर्दृष्टि के सिद्धांत द्वारा सीखने से छात्र की मानसिक शक्तियों एवं क्षमताओं का विकास होता है। कक्षा के स्तर पर कल्पना करना, तुलना करना, तर्क करना आदि मानसिक शक्तियों के लिए यह सिद्धांत विशेष उपयोगी है।

क्रो एवं क्रो- के अनुसार यह सिद्धांत किसी विषय वस्तु के उच्च ज्ञान प्राप्ति में विशेष रूप से सहयोगी है। साहित्य, कला एवं संगीत की शिक्षा के लिए यह सिद्धांत महत्वपूर्ण है |

 3-  उच्च मानसिक शक्तियों के विकास में सहयोगी होने के कारण यह सिद्धांत व्याकरण शिक्षण में उपयोगी है इसी प्रकार अंकगणित एवं रेखागणित की समस्याओं के हल करने में भी इस सिद्धांत की उपयोगिता है |

 4-  यह सिद्धांत   ह्यूरिस्टिक पद्धति  पर आधारित है अर्थात छात्र स्वयं खोज के मार्ग पर अग्रसर होता है। छात्र किसी नवीन परिस्थितियों से समायोजन करने तथा समस्या को सुलझाने में अंतर्दृष्टि से काम लेता है।

 सार रूप यह कहा जा सकता है कि ऐसे विषय जो अभ्यास अथवा यांत्रिक स्वरूपों द्वारा नहीं सीखे जा सकते उन उच्च विषयों  जैसे- इंजीनियरिंग, विज्ञान, कला आदि के शिक्षण के लिए अंतर्दृष्टि अथवा सूझ के सिद्धांत अति महत्वपूर्ण है।

 

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