क्लार्क लियोनार्ड हल, टोलमैन / टालमन, एडविन गुथरी

 क्लार्क लियोनार्ड   हल, टोलमैन / टालमन,     एडविन गुथरी


क्लार्क लियोनार्ड हल (1884-1952) -

 

 एक अमेरिकी मनोवैज्ञानिक थे, जिन्होंने व्यवहार के वैज्ञानिक नियमों द्वारा सीखने और प्रेरणा की व्याख्या करने की कोशिश की  हल को एडवर्ड c. टोलमैन के साथ उनकी बहस के लिए जाना जाता है। 

हल का पुनर्बलन या प्रबलन सिद्धान्त


 हल के अनुसार- सीखना, आवश्यकता की पूर्ति की प्रक्रिया के द्वारा होता हैं

 हल मूल रूप से व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक थे, इन्होंनें सीखने के पुनर्बलन या प्रबलन सिद्धान्त को प्रतिपादित किया।

 इस सिद्धान्त को थार्नडाईक तथा पावलाव के सिद्धान्त की योजक कडी माना जाता है। इस सिद्धान्त में सीखने हेतु आवश्यकता को सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है |

यदि सामान्य क्रिया करने पर आवश्यकता अपूर्ण रह जाती है तो चालक उत्पन्न होते है, जिनसे तनाव उत्पन्न होता है। विशिष्ट क्रिया करने पर आवश्यकता की पूर्ति चालक शांत तथा तनाव दूर हो जाता है।

 यह विशिष्ट क्रिया भविष्य में व्यक्ति को पुनर्बलन प्रदान करती है। चालक या तनाव प्राणी को विशिष्ट क्रिया करते हेतु बाध्य या मजबूर करते है । इसलिए हल को पुनर्बलन सिद्धान्त का जनक माना जाता है।

 'पुनबर्लन' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग सीखने की क्रिया में स्किनर ने किया |

 

 

             टोलमैन / टालमन का सिद्धान्त

 टालमैन / टालमन मुख्य रूप से व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक थे। परन्तु उन्होंने पावलाव का समर्थन किया अपने प्रयोग चूहों पर किये थे इन्होनें सीखने के प्रयोजनवाद, उद्देश्यवाद या संकेतवाद सिद्धान्त का प्रतिपादन किया था।

      टालमन सीखने की प्रक्रिया को दो प्रकार की मानते है।

टालमन अनुसार सामान्य सीखने में थार्नडाईक का सिद्धान्त महत्वपूर्ण होता है, लेकिन मानवीय अधिगम जिसकी प्रकृति विशिष्ट होती है,जो उद्देश्यों पर आधारित होता है, इसलिए इसमें थार्नडाइक सिद्धान्त असफल हो जाता है तथा

कोहलर का सिद्धान्त महत्वपूर्ण होता है। जब प्राणी सीख रहा हो या सीखने की प्रक्रिया चल रही हो, उस दौरान यदि किसी क्लू, ट्रिक, या चिह्न की पहचान कर ली जाती है, तो सीखना सरल हो जाता है।

 

 

          एडविन गुथरी का सामीप्य सम्बद्धता का सिद्धान्त

 इनके सिद्धान्त को सामीप्य सम्बद्धता का सिद्धांत कहते है। प्रकृति द्वारा जीवों को उद्दीपन प्राप्त होते है, तथा सभी जीव अपने स्वभाव के अनुरूप अनुक्रिया करते है, जिससे दोनों के मध्य संम्बन्ध स्थापित हो जाता है

 जब उद्दीपन तथा अनुक्रिया में सामान्य प्रक्रिया हो रही हो या संबंध बन रहा हो तो उसी दौरान एक काल्पनिक स्वतः उद्दीपन निर्मित होता है इसकी प्रकति उत्प्रेरक के समान होती है, जो मूल उद्दीपन तथा अनुक्रिया को समीप ले आता है, जिससे सीखना सरल हो जाता है।

 

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