संज्ञानात्मक अधिगम, जीन पियाजे,Jean Piaget, cognitive development

 

       संज्ञानात्मक सिद्धान्त

इन सिद्धान्तों की प्रक्रिया सीखने में बुद्धि पर निर्भर करती है | इन सिद्धान्तों में जन्म से लेकर बुद्धि के पूर्ण विकास होने (8 वर्ष)तक के मानसिक विकास का अध्ययन किया जाता है।

 इन सिद्धान्तों में स्मृति से लेकर तर्क तथा वाद-विवाद तक के मानसिक विकास को सम्मिलित किया जाता है। जीन पियाजे ने इस सिद्धान्तों को स्पष्ट करने हेतु सर्वाधिक प्रयोग किए जो वर्तमान में भी सर्वमान्य माने जाते हैं

इसलिए जीन पियाजे को इन सिद्धान्तों का जनक माना जाता है।

      जीन पियाजे

 Jean Piaget in Ann Arbor.png

 

          जीन पियाजे का सिद्धान्त

पियाजे द्वारा प्रतिपादित संज्ञानात्मक विकास सिद्धान्त (Theory of  cognitive development )

 मानव बुद्धि की प्रकृति एवं उसके विकास से सम्बन्धित एक विशुद्ध सिद्धान्त है।

पियाजे के अनुसार - व्यक्ति के विकास में उसका बचपन एक महत्वपूर्ण भूमिका अदा करता है। पियाजे का सिद्धान्त, विकासी अवस्था सिद्धान्त ( Development stage theory )

कहलाता है।

यह सिद्धान्त ज्ञान की प्रकृति के बारे में है और बतलाता है कि मानव कैसे ज्ञान का क्रमश: अर्जन करता है, कैसे इसे एक-एक कर जोड़ता है और कैसे इसका उपयोग करता है।

व्यक्ति वातावरण के तत्वों का प्रत्यक्षीकरण करता है अर्थात पहचानता है, प्रतीकों की सहायता से उन्हें समझने की कोशिश करता है तथा संबंधित वस्तु/व्यक्ति के संदर्भ में अमूर्त चिन्तन करता है |

उक्त सभी प्रक्रियाओं से मिलकर उसके भीतर एक ज्ञान भण्डार या   संज्ञानात्मक संरचना उसके व्यवहार को निर्देशित करती हैं

इस प्रकार कहा जा सकता हैं कि कोई भी व्यक्ति वातावरण में उपस्थित किसी भी प्रकार के उद्दीपकों (stimulus ) से प्रभावित होकर सीधे प्रतिक्रिया नहीं करता है, पहले वह उन उद्दीपकों को पहचानता है, ग्रहण करता है, उसकी व्याख्या करता है। और संज्ञात्माक संरचना वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों और व्यवहार के बीच मध्यस्थता का कार्य करती हैं।

पियाजे ने व्यापक स्तर पर संज्ञानात्मक विकास का अध्ययन किया। पियाजे के अनुसार, बालक द्वारा अर्जित ज्ञान के भण्डार का स्वरूप विकास की प्रत्येक अवस्था में बदलता हैं और परिमार्जित होता रहता है।

 

पियाजे के संज्ञानात्मक सिद्धान्त को  विकासात्मक सिद्धान्त भी कहा जाता है। चूंकि उसके अनुसार, बालक के भीतर संज्ञान का विकास अनेक अवस्थाओ से होकर गुजरता है, इसलिये इसे    अवस्था सिद्धान्त भी कहा जाता है

 पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास को चार अवस्थाओं में विभाजित किया है-

 

1-  संवेदिक पेशीय अवस्था (Sensory motor )- जन्म के 2 वर्ष

2-  पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था (Pre Operational) - 2 - 7 वर्ष

3-  मूर्त संक्रियात्मक अवस्था ( Concrete Operational)  7 - 11  वर्ष

4-  अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था (Formal Operational )- 11 - 18वर्ष

 

1- संवेदी पेशीय अवस्था - इस अवस्था में बालक केवल अपनी संवेदनाओं और शारीरिक क्रियाओं की सहायता से ज्ञान अर्जित करता है। बच्चा जब जन्म लेता है तो उसके भीतर सहज क्रियाएं ( Relaxes ) होती हैं।

 इन सहज क्रियाओं और ज्ञानन्द्रियों की सहायता से बच्चा वस्तुओं ध्वनिओं, स्पर्श, रसो एवं गंधों का अनुभव प्राप्त करता है और इन अनुभवों की पुनरावृत्ति के कारण वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों की कुछ विशेषताओं से परिचित होता है।

2 - पूर्व-संक्रियात्मक अवस्था - इस अवस्था में बालक स्वकेन्द्रित स्वार्थी होकर दूसरों के सम्पर्क से ज्ञान अर्जित करता है।

अब वह खेल, अनुकरण, चित्र निर्माण तथा भाषा के माध्यम से वस्तुओं के संबंध में अपनी जानकारी अधिकाधिक बढ़ाता है। धीरे-धीरे वह प्रतीकों को ग्रहण करता है किन्तु किसी भी कार्य का क्या संबंध होता है तथा तार्किक चिन्तन के प्रति अनभिज्ञ रहते हैं।

इस अवस्था में अनुक्रमणशीलता पायी जाती है। इस अवस्था में बालक के अनुकरणो मे परिपक्कता जाती है

3 - अमूर्त संक्रियात्मक अवस्था -  इस अवस्था में बालक विद्यालय जाना प्रांरभ कर लेता है एवं वस्तुओं एवं घटनाओं के बीच समानता, भिन्नता समझने की क्षमता उत्पन हो जाती है

इस अवस्था में बालकों में संख्या बोध, वर्गीकरण, क्रमानुसार व्यवस्था किसी भी वस्तु, व्यक्ति के मध्य पारस्परिक संबंध का ज्ञान हो जाता है। वह तर्क कर सकता है।

बालक अपने चारों ओर के पर्यावरण के साथ अनुकूल करने के लिये अनेक नियम को सीख लेता है।

4 - औपचारिक संक्रियात्मक अवस्था - यह अवस्था 12 वर्ष के बाद की है इस अवस्था की विशेषता निम्न है

a. समस्या समाधान की क्षमता का विकास

b. तार्किक चिंतन की क्षमता का विकास

c. वास्तविक-आवास्तविक में अन्तर समझने की क्षमता का विकास

d. वास्तविक अनुभवों को काल्पनिक परिस्थितियों में ढालने की क्षमता का विकास

e. परिकल्पना विकसित करने की क्षमता का विकास

f. विसंगंतियाँ के संबंध में विचार करने की क्षमता का विकास

 

 

      ज्ञानात्मक विकास की प्रक्रिया एवं संरचना -

जीन पियाजे ने संज्ञानात्मक विकास की प्रकिया में मुख्यत: दो बातों को महत्वपूर्ण माना है।

1-   संगठन  2- अनुकूलन

1- संगठन से तात्पर्य बुद्धि में विभिन्न क्रियाएं जैसे प्रत्यक्षीकरण, स्मृति, चिंतन एवं तर्क सभी संगठित होकर करती है।

उदा. - एक बालक वातावरण में उपस्थित उद्दीपकों के संबंध में उसकी विभिन्न मानसिक क्रियाएं पृथक पृथक कार्य नहीं करती है बल्कि एक साथ संगठित होकर कार्य करती है।

वातावरण के साथ समायोजन करना संगठन का ही परिणाम है। संगठन व्यक्ति एवं वातावरण के संबंध को आंतरिक रूप से प्रभावित करता है।    

अनुकूलन बाह्य रूप से प्रभावित करता है

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